मातृभूमि के वीर!

 

मातृभूमि के वीर!


हे मातृभूमि के वीर!
बता दो, कहाँ गए?
 
तुम्हें ढूँढता हूँ मैं, वन-वन में,
धरती पर और नील गगन में।
कहीं निशां भी मिला नहीं मुझे,
क्या धरती की गोद में सो गए?
 
हे मातृभूमि के वीर!
बता दो, कहाँ गए?
 
यह कह मुझसे गए थे तुम,
मैं लौट कर वापस आऊँगा।
इंतजार मुझे है उस दिन का,
जब तेरा दर्शन कर पाऊँगा।
 
पर क्या मान लूँ मैं यह कि,
मुझसे झूठा था वादा किया?
मेरा मन मान नहीं सकता है,
पूरा अबतक हर वादा किया।
 
अपने नेक इरादों के खातिर,
शायद हमें भूल गए हो तुम।
अब मुझे बता मेरे सुहाग, क्या
धरती की गलियों में खो गए?
 
 हे मातृभूमि के वीर!
बता दो, कहाँ गए?
 
हाथों के मेंहदी की लाली,
जस की तस है रची हुई।
सूर्ख सुहाग के जोड़े में मैं,
बैठी हूँ अबतक सजी हुई।
 
राह देखती हूँ तेरा, अब
आँखें मेरी थक सी गई।
शायद तन ये साथ न दे,
ये साँसे भी रूक सी गई।
 
अब तो लौट चले आओ,
मैं कबतक राह निहारूँगी?
आती हूँ अब पास तुम्हारे,
चाहे चले तुम, जहाँ गए।
 
हे मातृभूमि के वीर!
बता दो, कहाँ गए?

 

 

 

 

 

 

 


एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Do leave your comment.