
रौशनी बन कर, मेरे घर में आना तू जरा |
चिरागे-इश्क से, कभी न जलाना तू जरा |
चिरागे-इश्क से, कभी न जलाना तू जरा |
तेरे अंजुमन में बैठकर भी, अकेला हूँ मैं,
मेरे दिल के झरोखे से, समाना तू जरा |
सजी है सेज फूलों से, अपने सपनों की,
समां के बाँहों में मुझको, छुपाना तू जरा |
निगाहें फेरकर मेरी राह से जाना न कभी,
कसम जो खाई, उसे भी निभाना तू जरा |
हजारों काँटे बिछे हैं, “ब्रज” की गलियों में |
कदम अपना संभाल कर, बढ़ाना तू जरा |
Do leave your comment.