गज़ल

 



                                                        

गज़ल


रौशनी बन कर, मेरे घर में आना तू जरा |
चिरागे-इश्क से, कभी न जलाना तू जरा |

तेरे अंजुमन में बैठकर भी, अकेला हूँ मैं,
मेरे दिल के झरोखे से, समाना तू जरा |

सजी है सेज फूलों से, अपने सपनों की,
समां के बाँहों में मुझको, छुपाना तू जरा |

निगाहें फेरकर मेरी राह से जाना न कभी,
कसम जो खाई, उसे भी निभाना तू जरा |

हजारों काँटे बिछे हैं, “ब्रज” की गलियों में |
कदम अपना संभाल कर, बढ़ाना तू जरा |

 

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