नया सवेरा

                                                नया सवेरा

इंतजार है मुझको अब, इस काली रात के ढ़लने का।
कि नया सवेरा आए और जीवन में उजियारा कर दे।

अम्बर के फलक पर ध्रुवतारा अबटिमटिम करता है।
उन टूटे हुए तारों का शेषजाने कबसे आहें भरता है।
खामोश निगाहें ढूँढ़ रही हैंव्याकुल होकर उपवन में।
रोक रखा कहीं गिर न जाएयह नीर हमारे नयनन से।

प्रलयंकारी तूफान उठाक्या नीड़ सलामत है खग का?
लौट चले उस भरी दुपहरी, क्या राह बसेरा है पग का?
बोझ लिए सिर पर अबला, गर्भस्थ शिशु का भार लिए।
भूख प्यास से व्याकुल हुए, आँखों में नया संसार लिए।

अवसाद ग्रसित उर आनन, अंतर्मन को झकझोर रहा।
जन मानस चित्कार रहा है, ये विपदा ही चहुँओर रहा।
विफलता भी दृढ़ता को, क्या विचलित कर सकती है?
जीवन जो दुबारा मिले नहीं, उसका वह दम भरती है।

कर्म का अंश विफलता है, तो व्यग्र भला ही क्यों होवे?
ऊँचा चढ़ने की चाहत में, जब फिसलेंगे तब क्यों रोवें?
मन में भय जब पाल लिया, फिर ऊँचा ही चढ़ना क्या?
फिसलेंगे तब फिर से चढ़ेंगे,चढ़ने से पहले डरना क्या?

घनघोर घटा जब छाई हो, रात भी हो काली – काली।
वह बरसेंगे निश्चय जानो, छँट जाए घटा सब मतवाली।
तब नीरवता छा जाती हैहरियाली उपरांत में आती है।
तब नया सवेरा आएगा, जो विपदा है छाई वह जाएगी।

जब विपदा दूर चली जाएँगी, तब खुशियाँ छा जाएँगी।
हे ब्रह्म सुनो विनती मेरीजग जीवन में खुशियाँ भर दे। 


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