आवाहन

 

आवाहन


बहुत वक्त अब गुजर चुका है,

करना है कुछ काम मुझे

चक्र समय का चलता जाता,

नहीं करना आराम मुझे

 

निर्बल तन में सबल मन का,

डेरा कबतक रह पाएगा ?

निर्भर होकर जब कभी न रहा,

क्या निर्भरता, मन सह पाएगा ?

 

ऐ मौत ! आमंत्रण है मेरा,

अब देर करो न आ जाओ

अमर आत्मा दुर्बल काया में

रहे कबतक, राज बता जाओ

 

एक विनय मेरा है तुमसे,

आज नहीं तुम कल आना

है आज स्वतंत्रता दिवस देश का,

माँ भारती का ध्वज न झुका जाना

 

अपने खातिर सब सह सकता हूँ

माँ का अपमान न होने दूंगा मैं

जान चली जाए वतन के खातिर,

पर सम्मान न कम होने दूंगा मैं

 

यदि बेकार वसन हो तन का,

तब मानव भी उसे बदलता है

देश के खातिर कुछ करने को,

अबतक मेरा मन, मचलता है

 

पर क्या जर्जर काया यह,

काम वतन के आ सकता

ख्वाहिश मेरी है प्राण मेरा,

तन अपना ये बदल पाता

 

इसलिए आवाहन करता हूँ,

आकर मुझे लिवा लो तुम

पुनः भेज इस पुण्य धरा पर,

माँ से मुझे मिला दो तुम

 

बचा अधूरा काम जो है,

उसे पूरा मुझे करना है

शान,मान, सम्मान देश का,

जग में ऊँचा रखना है

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