चंचल चित्त, नयन तेरा यह
कोमल मन को भाते हैं।
बैठी तुम हो पिया –
पर्यंके,
लगती नव पारिजात हो।
उर - आनन तेरा डोल रहा,
मन – वीणा की तारें खोल रहा।
सुन्दर, सुखद, स्वाभाविक
चितवन
तेरे, घहराते यह झंझावात हैं।
उठती कसक है, मन में तेरे,
आते होंगे अब प्रियतम मेरे।
खोल रहे इस कली के पट को
जैसे, बदली को बरसात है।
सिमटी हुई पिया की बांहों
में,
दब गई सिसकियाँ आहों में।
पल भर को सब कुछ भूल गए,
सुहागन की पहली रात है।
👏👏👏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
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