चेहरे
पे निकली गोरी, घूँघट को डाल के।
घूँघट
में सूरत दिखता, उठता सवाल है।
घूँघट
तो गोरी का, बड़ा ही जंजाल है।
घूँघट
से देखो बिगड़ा, गोरी का चाल है।
सूरत
है गोरी उनकी, तिरछी जो नजरें हैं।
लाती
मादकता उनकी, आँखों की कजरे हैं।
कजरे
की धार करती मन को बेहाल है।
घूँघट
में सूरत दिखता, उठता सवाल है।
सूरज
की रोशनी सी चेहरे का नूर है।
ऐसे
चमकती जैसे, वो कोहिनूर है।
बिखरी
घटाओं सी मुखड़े पर बाल है।
घूँघट
में सूरत दिखता, उठता सवाल है।
खन-खन
खनकती उनकी पांव की पायल है।
चलती
बलखाके जब वो करती दिल घायल है।
घायल
इस दिल को कोई अब न मलाल है।
घूँघट
में सूरत दिखता, उठता सवाल है।
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