
अब कोई मेरे पास न है।
बौराई पेड़ों की हरियाली सी,
कोई यहाँ मधुमास न है।
गिरि सामान उन्नत यह मस्तक,
शोभित चन्दन का लाल तिलक।
हरी-हरी दुभों से भरी, उन
खाली खेतों का बड़ा फलक।
फूलों – कलियों की भरी ठिठोली,
सा एक हास-परिहास न है।
बौराई पेड़ों की हरियाली सी,
कोई यहाँ मधुमास न है।
गोधूलि की तरूणिम आभा वह,
चिड़ियों की कलरव करती गानें।
सरिता की निश्चल धारा और,
झरनों की झर्र-झर्र करती तानें।
कोकिल कंठो से निकले सुर में,
वैसा अब विश्वास न है।
कोई यहाँ मधुमास न है।
गोधूलि की तरूणिम आभा वह,
चिड़ियों की कलरव करती गानें।
सरिता की निश्चल धारा और,
झरनों की झर्र-झर्र करती तानें।
कोकिल कंठो से निकले सुर में,
वैसा अब विश्वास न है।
बौराई पेड़ों की हरियाली सी,
कोई यहाँ मधुमास न है।
कोई यहाँ मधुमास न है।
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