
शाखाओं के नव पल्लव सी,
कोमल है मन उर तेरा।
कोकिला की मधुर गूंज सी,
गायन करती सुर तेरा।
नव विहान में विहग – वृंद के,
कलरव मन को भाते हैं।
बागों की मासूम कली पर,
भँवरे गुंजन कर जाते हैं।
नाच उठी है मन की मयूरी,
बोल उठे हैं नुपुर तेरा।
शाखाओं की नव पल्लव सी,
कोमल है मन उर तेरा।
कोकिला की मधुर गूंज सी,
गायन करती सुर तेरा।
लहराती नागिन सी घटाएं,
मेघ गरज इतराते हैं।
प्रिय विहीन अबला के मन,
गर्जन से डर जाते हैं।
तन उमंग से लरज रहा,
मन फूट रहा अंकुर तेरा।
शाखाओं की नव पल्लव सी,
कोमल है मन उर तेरा।
कोकिला की मधुर गूंज सी,
गायन करती सुर तेरा।
Bahut khoob 👍🏻
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