स्वदेशी और स्वावलंबन
Brajesh Kumar Karn
4:49 pm

आज देश को बड़ी जरूरत है,
हम सब की कुर्बानी का।
देश के खातिर मोल चुकाना
है,
आदत उसी पुरानी का।
कुर्बानी इतनी न बड़ी है,
आए हम पर भी आघात कोई।
त्याग हमें इतना करना है,
नहीं लेंगे विदेशी, सौगात कोई।
न ही खुद क्रय करना है,
और न ही किसी से लेना है।
खाना है हमें, पाना है हमे।
अपने खेतों में उगा चबेना
है।
जो बनता है देश में अपने,
उसको उपयोग में लाना है।
जो उगता मिट्टी में अपनी,
उसको ही हमें, खाना है।
जब खाएँगे अन्न देश का,
देश के प्रति मन, अपना होगा।
हैं कुछ अभी गद्दार देश
में,
पर पूरा न उनका, सपना होगा।
एक बने हम, नेक बने हम
वफा जो देश के खातिर हो ।
कुचल देंगे गद्दारों के
फन,
चाहे कितना भी शातिर हो।
हर मुसीबतों का मुकाबला,
नायक अपना कर पाता है।
लोकल के लिए वोकल कह,
सपनों को पंख लगाता है।
मातृभूमि अपनी है हमारी,
हमको हर फर्ज निभाना है।
अपने नायक की बातों को,
हमें खुश होकर अपनाना है।
आज से यह प्रण लेना है,
हर बात बेझिझक, हम मानेंगें।
जैसा वो कहे, वैसा ही करें।
उसे वटवृक्ष रूपी, हम जानेंगे।
बहुत सुंदर विचार 🙏🙏👍👍
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धनयवाद |
हटाएंआपका बहुत बहुत धनयवाद |
जवाब देंहटाएंGood very good
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