गीत - दोस्ती का
Brajesh Kumar Karn
9:14 am

मुझको वह मेरी
तन्हाई, याद आती
है।
सच कहता हूँ कि जुदाई याद आती है। मुझको…….
बचपन का दोस्त और मस्ती के दिन थे।
मुझे उस दोस्त की सच्चाई याद आती है। मुझको…..
साथ-साथ रहना होता, साथ-साथ
खाना।
एक साथ सोना और पढ़ाई याद आती है। मुझको…..
हाथ में किताब लेकर, लेट कर
हम पढ़ते।
सीने पर किताब रख,जम्हाई
याद आती है। मुझको…..
आते ही वसंत, आम याद
हमें आता था।
आम के उस पेड़ की बौराई याद आती है। मुझको…..
जैसे ही किसी पेड़ पर आम बड़े होते थे।
तोड़कर खाना, वह
खट्टाई याद आती है। मुझको…..
अपने ही खेत में घुस,
चने का उखाड़ना ।
मकई के पेड़ की वह बाली याद आती है। मुझको…..
खेतों से धान की जड़ों को भी उखाड़ना ।
उससे, उस चने
की पकाई याद आती है। मुझको…..
दोस्ती सच्ची थी, हम दोस्त भी सच्चे थे।
दुश्मनों को दोस्त से
कुटाई याद आती है। मुझको…..
अपनी दोस्ती से पिताजी
दोस्त बन गए।
अपनी दोस्ती की, परछाईं याद आती है। मुझको…..
दोनों की ही माएँ भी खूब
प्यार देती थी।
दोस्ती की अपनी, दुहाई
याद आती है। मुझको…..
दोस्त का शादी के लिए उस मेले
में जाना।
मेले ही दोस्त की, कुरमाई याद आती है। मुझको…..
बचपन के दिन कभी लौटकर न
आएगा।
दोस्त की हमें वो, रूसवाई याद आती है। मुझको…..
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