निष्कलंक सूरज

                                    
                                                        
निष्कलंक सूरज


जीवन के इस महासमर में,

रणभेरी बजाकर आया हूँ |

दुष्ट दलन करने को मैं,

अमोघ अस्त्र एक लाया हूँ |

 

           सत्पुरुषों के सत्प्रयास अब,

   पल-पल हो रहें निष्फल हैं |

 महाभारत अब रची जा रही,

    जन-जीवन में हर पल हैं |

 

पार्थसारथी ने कहा पार्थ से,

युद्ध करो तुम शोक नहीं |

मौत किसी के वश में नहीं,

मौत पर कोई रोक नहीं |

 

इसलिए अब सुनो हे अर्जुन,

  यहाँ नहीं कोई तेरा है |

जो भी उधर खड़े दिखते,

उन सबको पापों ने घेरा है |

 

उनमें से कोई पापी न हो,

पर पाप के सभी समर्थक हैं |

पांचाली के चीर हरण के,

बने मूक सभी दर्शक हैं |

 

पाप सहित पापी को भी,

  अब तुम्हें मिटाना होगा |

  निष्कलंक कल का सूरज हो,

  ऐसा अलख जगाना होगा |



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.