जीवन के इस महासमर में,
रणभेरी बजाकर आया हूँ |
दुष्ट दलन करने को मैं,
अमोघ अस्त्र एक लाया हूँ |
सत्पुरुषों के सत्प्रयास अब,
पल-पल हो रहें निष्फल हैं |
महाभारत अब रची जा रही,
जन-जीवन में हर पल हैं |
पार्थसारथी ने कहा पार्थ से,
युद्ध करो तुम शोक नहीं |
मौत किसी के वश में नहीं,
मौत पर कोई रोक नहीं |
इसलिए अब सुनो हे
अर्जुन,
यहाँ नहीं कोई तेरा है
|
जो भी उधर खड़े दिखते,
उन सबको पापों ने घेरा
है |
उनमें से कोई पापी न हो,
पर पाप के सभी समर्थक हैं |
पांचाली के चीर हरण के,
बने मूक सभी दर्शक हैं |
पाप सहित पापी को भी,
अब तुम्हें मिटाना होगा
|
निष्कलंक कल का सूरज
हो,
ऐसा अलख जगाना होगा |
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