संघर्ष तुम्हारा याद करूँ मैं,
तब द्रवित हृदय होता मेरा।
जो वक्त तेरा फाँकों में गया,
उसे देख ये मन रोता मेरा।
तब द्रवित हृदय होता मेरा।
जो वक्त तेरा फाँकों में गया,
उसे देख ये मन रोता मेरा।
फिर भी हार न माना तुमने,
न ही कभी विचलित ही हुए।
शांत रहे धीरज भी न खोया,
बगिया को सिंचित जो किए।
भूल सके न उस दिन को तुम,
जो सीख था तेरे बचपन का।
खुद से ही मार्ग प्रशस्त किया,
छोड़ दिया राह अवलंबन का।
बीत रहे थे चैन से दिन, फिर
नजर लगी, तेरे चिलमन पर।
लोग जो कहने को अपने थे,
कालिख थी उनके दामन पर।
मन भरमाया तेरा उसने और,
सपने भी ऊँचे ही दिखाए थे।
उलझ गए तुम उसी जाल में,
खो बैठे वह सब जो पाए थे।
साथी भी साथ निभाया नहीं,
दुश्वार भी पथ होता ही गया।
ऊँचे उड़ने की चाहत में कब,
नभ के बीच सब खोता गया।
याद शेष बस अब तो बचा है,
धुँधली यादें बस, संबल होगा।
मन अवसाद में, डूब सके नहीं,
संभालो, नहीं तो निर्बल होगा।
Do leave your comment.