प्रखर किरण

 

प्रखर किरण


नयनों से जाम पिलाया है,
अधरों पर नाम तुम्हारा है।
तुम बैठी हो हृदयस्थल में,
तुमसे ही घर उजियारा है।
 
जो कली खिलें हैं आँगन में,
अब उन्हें फूल तो बनने दो।
जो लिपट गए दामन में तेरे,
उनको खुलकर खिलने दो।
 
जब कोई आसरा ढूँढ़ रहा
मायूस न मन होए उसका।
करूण नेत्र, कातर आनन,
द्रवित हृदय भी हो वशका।
 
बाती न बुझे किसी दीये का,
लौ कायम और जलता रहे।
बादलों में दिनकर छुप जाए,
पर, सूर्योदय न ढलता लगे।
 
अरूणोदय के प्रखर किरण,
उल्लास भरे हृदय आँगन में।
जैसे कोयल काली होती पर,
ध्वनि गूँजे, किसी कानन में।
 

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