नारी

 

नारी


हे नारी! तू अबला नहीं है,
जग की तू जगतारिणी है।
छू पाए यदि कष्ट कोई भी,
बन जाती दु:खहारिणी है।

 

तेरा हर त्याग समर्पण जो,
खुद के लिए नहीं होता है।
स्वयं न्योछावर हो जाती है,
जब अपना, कोई रोता है।

 

तेरे ही दम से तेरे घर में,
खुशहाली सदा छाई रहती।
जब मन से मुस्काती हो,
चेहरे पर हरियाली रहती।

 

तुम्हें खुशी मिलती है जब,
तुम पर, प्यार बरसता हो।
खुशी नसीब उनको होती,
जो तेरे दिल में रहता हो।

 

तुम धारित्रि, तुम धारिणी।
प्यार का प्रतिमान हो एक।
कर नहीं सकता कोई बयां?
तुझमें छुपे गुण हैं अनेक।

 

पर तेरा वह रूप भयानक,
हमने देखा जो पहली बार।
पर पीड़ा सह पाती नहीं हो,
जब सामने होता अत्याचार।

 



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