पथिक

 

पथिक

हे पथिक!
तुमने कभी, सोंचा है क्या?
जिस पथ पर, तुम बढ़ चले।
आसान कितना पथ वह है?
 
जाना नहीं कभी भूलकर,
उस राह, जो अनजान है।
पग उसी पथ पर बढ़ाना,
जिसका जरा भी ग्यान है। 
 
चाहे हो लम्बी दूरियाँ पर,
बाधा न हो, कोई राह में।
काँटे यदि बिखरे कई हो,
उलझे न दामन, चाह में।
 
फूँककर रखना कदम जो,
न डिगे कभी बाधाओं से।
निश्चय अटल हो मन में,
भय हो नहीं विपदाओं से।
 
याद रखना हर कदम जो,
बढ़ चले मंजिल की ओर।
पास मंजिल आएगी जब,
कर में हो मंजिल का डोर।
 
जब कदम सीधा चले नहीं,
और दिशा भी विपरीत हो।
दूर मंजिल होके रहेगी तब,
राहों में कोई न मनमीत हो।

उसी राह में मिलते हैं साथी
जिस राह चल मंज़िल मिले।
उल्टा चलोगे मंजिल से जब,
न सोंचना कि साहिल मिले।

 

 

 

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