प्यार किसी रिश्ते का नाम नहीं है। यह एक ख़ूबसूरत अहसास है. जिस तरह हवा के किसी झोंके को हम न ही देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं, बस अनुभव कर सकते हैं। ठीक उसी तरह हम जिस किसी से भी प्यार करते हैं या जिस किसी से भी हमें प्यार हो जाता है, उसका केवल अहसास कर सकते हैं। यह कोई रिश्ता नहीं है जिसका कि कोई नाम दिया जा सके। यह तो केवल दिल को छूनेवाली एक अनुभूति है जिसका हम केवल अपने दिल की गहराईयों से अहसास कर सकते है। हमें प्यार किसी से भी हो सकता है। यह जरूरी नहीं है कि प्यार किसी पुरूष का किसी स्त्री से या किसी स्त्री का पुरुष से ही हो। प्यार माँ से, बाप से, भाई से, बहन से, रिश्तेदारों से, दोस्तों से, पड़ोसियों से, पराये मर्द से, परायी औरत से या फिर अपने स्कूल या कॉलेज के सहपाठियों से भी हो सकता है।
प्यार को हम एक ख़ूबसूरत अहसास इसलिए भी कहते हैं कि
यह सोंच समझकर नहीं किया जाता है, बस अचानक से ही हो जाता है। और जब हो जाता है तब कहीं जाकर यह अहसास होता
है कि हमें प्यार हो गया है। यह अक्सर देखा जाता है कि प्यार दो भिन्न लिंग वाले
व्यक्तियों के बीच ज्यादातर होता है। यह मनुष्य की प्रवृति है कि एक पुरूष का एक
स्त्री के प्रति या एक स्त्री का पुरुष के प्रति आकर्षण अति शीघ्र ही होता है। जब
कोई किसी से प्यार करता है तो वह यह नहीं देखता है कि सामने वाला कौन है, किस समाज से है, कितना पढ़ा-लिखा है, उसके पास कितनी सम्पत्ति है, वह अमीर है या गरीब है। उसकी आर्थिक स्थिति
कैसी है? इसलिए ही कहा जाता है कि,
इश्क पूजा है, कोई जज्बात नहीं।
इश्क यकीन और ईमान भी है,
इश्क खुदा भी और भगवान भी है।
भगवान कृष्ण और श्री राधारानी का प्रेम, प्रेम जगत का एक अनुपम उदाहरण है। उम्र में बड़ी होने के बाद भी राधा कृष्ण की दीवानी थी। वह उनसे अगाध प्रेम करती थी। जब श्री कृष्ण मुरली बजाते थे तब मुरली का धुन सुनते ही वह मतवाली हो जाती थी और जहाँ कहीं भी होती दौड़ी-दौड़ी अपने कन्हैया के पास चली आती थी। जब कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा जाने लगे तो राधा काफी उदास हो गयी। तब जाते हुए भगवान कृष्ण ने उन्हें अपना मुरली दे दिया। जिसका धुन उनकी आत्मा को एक अतृप्त अहसास का अनुभव कराती थी और वह कृष्ण के पास दौड़ी चली आती थी। कहा तो यह जाता है कि निश्छल प्रेम के बाबजूद दोनों की आपस में शादी नहीं हुई थी. फिर भी उनका प्यार अमर है।
ठीक इसी प्रकार के एक निश्छल प्रेम की कहानी मैं लिखने जा रहा हूँ, जो है तो
काल्पनिक। परन्तु अगर आप इसे अंत तक पढेंगे तब पाएंगे कि यह कहानी कहीं न कहीं
हमारे आस-पास की घटने वाली घटना है।
किसी गाँव में किशन नाम का एक धनी आदमी रहता था। वह धन दौलत के मामले में पूरी तरह से संपन्न था। उसके पास अकूत संपत्ति थी और किसी प्रकार की कोई कमी न थी। वह जब जो चाहता, हासिल कर लेता था। जिस कारण केवल अपने ही गाँव तक ही नहीं बल्कि पास के गाँवों में भी उसका नाम था। वह गाहे-बगाहे लोगों की मदद भी कर दिया करता था जिससे हर जगह उसकी चर्चा प्रायः हुआ करती थी। उसे एक बेटा था जिसका नाम दीपक था। दीपक जितना ही सुन्दर शक्ल से था उसकी अक्ल भी उतनी ही सुन्दर थी। वह पढ़ने लिखने में काफी होशियार और कुशाग्र था। अपने क्लास में हमेशा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण होता था। उसने अपनी दसवी तक की शिक्षा पास के गाँव के एक सरकारी स्कूल से की थी। इसके साथ ही वह अपने पिता का एक आज्ञाकारी पुत्र था। अपने पिता के आज्ञा की अवहेलना वह कभी नहीं करता था। वह पढ़ने में तेज तो था पर उसे खेती किसानी में मन नहीं लगता था। उसके पास नौकरों की एक अच्छी खासी फ़ौज थी जिसके मदद से उसके पिताजी, खेती का काम खुद ही सँभालते थे।
जिस गाँव में उसका स्कूल था उसी गाँव की रहनेवाली दीपिका नाम की एक लड़की उसकी सहपाठिन थी। दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। बल्कि दोनों की शिक्षा एक साथ ही चल रही थी। जब वे दोनों प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे तब भी एक ही स्कूल में एक ही क्लास में थे और जब उच्च विद्यालय में प्रवेश लिया तब भी दोनों साथ-साथ ही थे। दीपिका भी पढाई के मामले में ठीक थी। परन्तु वह सब सहुलियते नहीं मिल पाती थी जिसकी उसे जरूरत होती थी। फिर भी अपनी मेहनत और परिश्रम के बदौलत वह अच्छा कर रही थी। वह अपने माँ-बाप की अकेली संतान थी। उसका अपना कोई दूसरा भाई-बहन नहीं था। उसके पिताजी उसके बचपन में ही गुजर चुके थे जब वह सात-आठ साल की थी।उसकी माँ दूसरे के घरों में काम करके अपना और अपनी बेटी का परवरिश किया करती थी। परन्तु वह दीपिका को कहीं बाहर काम करने के लिए जाने नहीं देती थी। वह घर पर ही रहकर कुछ बच्चों को टिउशन दिया करती थी जिससे उसकी पढाई के खर्च निकल जाया करते थे। इस प्रकार दोनों माँ-बेटी की जिन्दगी गुजर रही थी।
बचपन से ही एक साथ एक ही क्लास और एक ही स्कूल में पढ़ने के कारण दोनों में एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया। जबतक उम्र छोटी थी तबतक उन्हें इस बात का अहसास नहीं होने पा रहा था।उन्हें लगता था कि हम एक दूसरे के बहुत ही अच्छे दोस्त हैं। परन्तु जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगी और शारीरिक परिवर्तन भी होने लगा तब उन्हें यह महसूस हुआ कि हमारा एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ गया है। उन्हें इस बात का अहसास होने लगा कि हमें एक दूसरे से प्यार हो गया है। समय बीतता रहा और नजदीकियाँ भी बढ़ती रही और उनका प्यार भी परवान चढ़ने लगा। जबतक वे दोनों एक दूसरे से मिल नहीं लेते, एक दूसरे को अपनी नजरों से देख नहीं लेते उनके दिन का चैन सकून सब छिन जाता था। इसका एक नतीजा यह हुआ कि दोनों में से कोई भी कभी स्कूल की छुट्टी नहीं करता था। वे हमेशा एक दूसरे को अपनी भरपूर नजरों से देखने को बेताब रहा करते थे जो स्कूल आकर ही संभव हो सकता था। इसलिए वह रोज स्कूल आया करते थे। क्योंकि स्कूल ही उनके लिए एक बेहतर ठिकाना था जहाँ पर वह एक दूसरे से मिल सकते थे और अपने मन की बात आपस में शेयर कर सकते थे।
परन्तु इतना सब कुछ होने के बावजूद भी दोनों में से किसी ने भी अपने पढाई के साथ कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने हमेशा ही शिक्षा के महत्व को समझा और इसके प्रति सचेत रहे। उन्हें ऐसा लगता था कि “ज्ञान बिना सब जग सूना”। इसलिए पढाई उनकी प्राथमिकता में था। वह इस बात को अच्छी तरह समझ रहे थे कि एक अच्छे व्यक्तित्व के विकास के लिए अच्छी शिक्षा ग्रहण करना आवश्यक है। दूसरी तरफ दीपक को इस बात का डर था कि हर क्लास में प्रथम आनेवाला व्यक्ति अगर किसी क्लास में द्वितीय भी आता है तो निश्चय ही पिताजी की नजर और इस बात की ओर जाएगी और हमारा राज, राज नहीं रह पाएगा। इसलिए वह पढाई के नाम पर कभी कोताही नहीं करता था। परन्तु कहते हैं न कि “इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपती, वह कभी न कभी उजागर हो ही जाता है।”

उसी प्रकार उनके प्यार की भी चर्चा स्कूल से निकलकर
गांवों तक और गाँव से निकलकर बाजारों तक होने लगी थी। लोग चाय की दुकान पर भी
बैठकर इनके प्यार की चर्चा करने लगे. क्योंकि एक तरफ अमीर बाप का बेटा और दूसरी
तरफ दूसरे के घरों में काम कर जीवनयापन करने वाली माँ की बेटी।जिसके घर में उसे
सहारा देने के लिए न तो उसके पिता ही थे और न ही कोई भाई। धीरे-धीरे यह बात गाँव
बाजारों से छनकर दीपक के पिता किशन तक पहुँच गयी। पहले तो उन्हें इस बात का
विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका बेटा भी इस तरह का कदम उठा सकता है। परन्तु समय के बीतने
के साथ-साथ उनके पास इस बात की खबर प्रायः आने लगी। जिससे वह विचलित होने लगे। एक
दिन उन्होंने बड़े प्यार से दीपक को अपने पास बुलाया:
“जी,पिताजी! आपने हमें बुलाया है।” वह अपने पिता के पास आकर मासूमियत भरे लहजे में बोला।उसे इस बात का कोई अहसास नहीं था कि उसके पिताजी उससे क्या बात करने वाले हैं।
“हाँ, मैंने आपको बुलाया है।” उसके पिताजी ने उसे पास रखी कुर्सी पर बैठने का
इशारा करते हुए कहा
“मैंने सुना है कि अब आप बड़े हो गए हैं। इसलिए अपने फैसले खुद लेने लगे है।” उसके पिताजी ने उससे बिना लाग-लपेट के यह बात कही।
“पिताजी मैं आपकी बात नहीं समझ पाया।” दीपक ने कहा।
“मैंने सुना है कि आपको प्यार हो गया है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि कौन है वह जिसे मेरे बेटे ने पसंद किया है।” उत्सुकतावश पिता ने पूछा।
कुछ देर तक तो दीपक अचंभित होकर रह गया। वह इस बात को समझ नहीं पा रहा था कि उसके पिता को कैसे इस बात का पता लगा। परन्तु जब उसके पिता इस बात को जान ही चुके थे तब उसने भी छुपाना उचित नहीं समझा। उसने सोंचा कि अगर मैंने न भी बताया तो आज न कल निश्चय ही पिताजी को सारी बातें मालूम हो जाएगी। इसलिए बेहतर होगा कि मैं खुद ही उन्हें सबकुछ बता दूँ. उसने एक-एक कर अपने पिता को सारी बातें बताना शुरू कर दिया। उसने बताया, “ उसका नाम दीपिका है। वह पास के गाँव की ही रहनेवाली है जिस गाँव में हमारा स्कूल है। वह अपने माँ-बाप की अकेली संतान है। उसके पिता नहीं हैं। वे उसके बचपन में ही उन दोनों को छोड़ कर चले गए। उसके घर में और कोई भी नहीं है जो उनलोगों की मदद कर सके। इसलिए घर का खर्च चलने के लिए उसकी माँ दूसरे के घरों में काम करती है और अपने पढाई का खर्च दीपिका दूसरे के बच्चों को पढ़ा कर उठाती है।
हमदोनों अपने बचपन से ही एक साथ एक ही स्कूल में पढ़ते
थे। पहले तो हम प्राथमिक विद्यालय में साथ-साथ पढ़े और फिर जब हमने उच्च विद्यालय
में अपना दाखिला लिया तो वहाँ भी वह साथ थी।हम अपने क्लास में प्रथम जरूर आते हैं
परन्तु उसका भी प्राप्तांक मेरे प्राप्तांक के आस-पास ही होता है। बचपन में तो हम
एक दूसरे को अपना दोस्त ही समझते थे। इतने दिनों तक एक साथ पढ़ने के कारण हमारा एक
दूसरे प्रति आकर्षण बढ़ता गया और कब हम एक दूसरे को चाहने लगे, हमें इसका पता ही नहीं चला। और जब
हमें पता चला तो इस बात का अहसास हुआ कि हम एक दूसरे को अपने दिलोजान से चाहने लगे
हैं।”
किशन जी ने बड़े ठंढे दिमाग से अपने बेटे के मुख से
सारी बातें सुनी। उन्हें इस बात की ख़ुशी भी हो रही थी कि बेटे ने उनसे अपनी सारी
बातें स्पष्ट रूप से बयान की है। इसके साथ ही उनको अपने बेटे के निर्णय पर दुःख भी
हो रहा था कि कैसे अपने स्टेटस का ख्याल किए बिना उसने उस लड़की को अपना जीवन
संगिनी बनाने का निश्चय किया है जिसकी माँ अपना जीवन यापन करने के लिए दूसरे के
घरों में काम करती है। बात आई गई, हो गई।
धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था। दीपक उच्चतर शिक्षा की प्राप्ति के लिए विदेश चला गया था। वहाँ पर उसकी शिक्षा पूरी हो चुकी थी और वह अपने घर शीघ्र ही लौटने वाला था। विदेश जाने से पहले वह एकबार दीपिका से मिला था, तब उसने अपने मन की बात उसके सामने रख दी थी। उसने कहा था कि मैं अभी उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए विदेश जा रहा हूँ। परन्तु जाने से पहले एक बात जो कई दिनों से बताना चाह रहा था और बता नहीं पा रहा था, आज बताना चाहता हूँ कि “ मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ और तुमसे ही शादी भी करना चाहूँगा, परन्तु अभी नहीं। तुम्हें मेरा इन्तजार करना होगा। जब मैं लौटकर आऊँगा अपने घर वालों से बात कर निश्चय ही तुम्हें अपना बनाऊंगा।” दीपिका यह सुन शरमा गयी थी और दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया था। तब दीपक समझ गया था कि वह भी उससे ही शादी करना चाहती है। उधर उसके घरवाले और इधर दीपिका भी उसके आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। वह समय भी आ गया जब वह लौटकर अपने घर आ गया। एक दिन दोनों पास के ही शहर में मिल गए। ढेरों बाते हुई। दीपक ने उसे भरोसा दिलाया कि शीघ्र ही वह अपने घरवालों से बात कर उसे अपना लेगा।
वह समय का इंतजार करने लगा। एक दिन वह समय भी आया। वह अपने पिता के पास उनके शयन कक्ष में गया और उनसे कुछ विनय किया,”पिताजी मुझे आपसे कुछ बात करनी है।”
“ हाँ.. हाँ.... बताओ. जो कुछ कहना है बेझिझक कह सकते हो।” किशन जी ने संयत स्वर में दीपक से कहा।
“पिताजी, अब मेरी पढाई पूरी हो गई है। मैं घर लौट आया हूँ। अगर आपकी इजाजत हो तो हम जॉब के लिए अप्लाई करें। अन्यथा आप जैसा कहें मैं वैसा करने को तैयार हूँ।” दीपक ने कहा।
“तुम्हें जॉब करने की आवश्यकता ही क्या है? हमारे पास जितनी सम्पति है, उसे देखभाल करनेवाला कोई तो होना चाहिए और फिर यह सबकुछ तो आज न कल तुम्हे ही संभालना है।” पिताजी ने कहा।
“और हाँ एक बात और अब मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी शादी
भी कर दी जाए।”
दीपक तो कुछ देर के लिए झेंप गया. फिर अपने आप को
नियंत्रित कर उसने सोंचा कि यही उचित अवसर है पिताजी से बात कर ही लेनी चाहिए। उसने झिझकते हुए कहा,”पिताजी मैंने
आपको दीपिका के बारे में बताया था। वह कैसी रहेगी।”
“ वह हमारे परिवार के लिए बिलकुल ही उपयुक्त नहीं रहेगी। कहाँ वह और कहाँ मैं। हमारी उसकी बराबरी कभी नहीं हो सकती। हमारे घर में नौकरों की फ़ौज खड़ी है और उसकी माँ दूसरे के घरों में अपने जीवन यापन के लिए काम करती है। जितना वह कमाकर लाती होगी हम नौकरों में बाँट दिया करते हैं। तुम्हारी शादी उसके साथ कभी नहीं हो सकती है।” पिताजी ने जरा तल्ख़ लहजे में यह बात अपने बेटे दीपक से कहा।
“मैं मानता हूँ पिताजी कि उसकी माँ अपने जीवन यापन के लिए दूसरे के घरों में काम करती है।परन्तु इसमें उसका क्या कसूर है। जहाँ तक बराबरी की बात है तो वह गरीब जरुर है पर अच्छे संस्कारों और विचारों वाली लड़की है। मेरे साथ बैठकर उसने मेरे बराबर की शिक्षा ग्रहण की है। स्कूल की पढाई में वह मेरे बराबर की अंक प्राप्त कर चुकी है। किसी भी प्रकार से वह हमसे कमतर नहीं है। इसलिए हम चाहते हैं कि वह मेरी जीवन संगिनी बने।” दीपक ने कहा।
“बेटा, हमारा अपना एक शान है। आस-पास के गांवों में मेरा रूतबा है। मेरा नाम लोग अदब के साथ लेते है। बड़े से बड़े लोग मेरे साथ बैठने में अपना शान
समझते है और छोटे लोग तो दूर से ही अदब करते हैं। इसलिए हम अपनी प्रतिष्ठा को धूल
में नहीं मिलने देंगे। तुम समझदार हो और अपनी अच्छाई बुराई खुद ही सोंच सकते हो। इसलिए
हम चाहेंगे की तुम अपना निर्णय बदल लो, अन्यथा हमें कोई कठोर निर्णय लेना पड़ेगा।”
उसके पिताजी ने गुस्से से कहा
आप मेरी कहानी "गुलामी से आजादी तक का सफर: बेटे की वापसी" पढ़कर इस बात भलीभांति समझ सकते है कि किस तरह दूसरों की कैद से आजाद होकर पुनः अपने परिवार से मिल सका।
“पिताजी जहाँ तक बात शान और रूतबा की है, तो यह मानने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि इसका आभाव उसके पास है। परन्तु यह शान, रूतबा, धन-दौलत सब पर उसका अधिकार होगा जब वह इस घर की बहु बनेगी। धन-दौलत का क्या है, आज हमारे पास है कल किसी और के पास चला जाएगा।पर ज्ञान का अंत शरीर के अंत होने पर ही होता है। इसलिए कहते हैं:
धन दौलत कभी पास तुम्हारे,कभी हमारे रहता।
खुली पलक में साथ निभाता,बंद पलक खो जाता।
कुदरत क्या-क्या खेल दिखाता है,तुम जानो न हम।
जहाँ तक निर्णय का सवाल है तो हम आपके खिलाफ़ बगावत कभी नहीं करेंगे। परन्तु इतनी विनती जरूर करना चाहेंगे कि यदि आप मेरा और मेरे भविष्य का भला चाहते है तो मेरे निर्णय को कृपया स्वीकार कर लें। अगर नहीं, आप अपने निर्णय पर अडिग हैं तो जो चाहे फैसला कर लें पर आज मैं एक एलान करना चाहता हूँ, वह सुन लें। अगर मेरी शादी उस लड़की से नहीं हो सकती जिससे मैं प्यार करता हूँ तो मैं उसके आलावा दुनिया की किसी भी लड़की से शादी नहीं कर सकता। यह मेरा फैसला है।”
यह ऐलान करने के बाद दीपक तेज कदमों से घर के बाहर निकल गया और सीधा दीपिका के
गाँव उसके घर पहुँच गया। अपने घर में आचानक से दीपक को आया देखकर उसे बड़ा आश्चर्य
हुआ। परन्तु उसने उससे कोई भी सवाल नहीं किया। क्योंकि वह उसके स्वाभाव से
भलीभांति अवगत थी। थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद दीपिका ने ही उस शांति को भंग किया
और पूछा,” आज आचानक से इधर कैसे आना हुआ।”
“हाँ, तुम्हारे घर में आचानक से मेरा आना तुम्हें आश्चर्य चकित तो कर रहा होगा। परन्तु इसमें आश्चर्य की कोई भी बात नहीं है। यह कुदरत का एक ऐसा नियम है जिसे कोई भी चाहकर झुठला नहीं सकता है। इसलिए मैं जो तुमसे कहने जा रहा हूँ उसे बड़े ध्यान से और शांतचित्त होकर सुनना।इसलिए यह बेहतर होगा कि हम दोनों बरामदे में चले और वहीं बैठकर बातें करें।”
“पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो, जो भी कहना है स्पष्ट कहो।” दीपिका ने कहा
“मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता हूँ, यह मेरे पिताजी का फरमान है। और मैं तुम्हारे सिवा किसी से भी शादी नहीं करूँगा यह मेरा एलान है। जो आज मैं अपने पिताजी से कर आया हूँ।” इतना कहकर वह वापस मुड़ना चाहा।
“जाने से पहले मेरी भी एक बात सुनता हुआ चला जा। मैंने प्यार केवल तुमसे किया है। वह भी बिना कुछ जाने, सोंचे और समझे. मैंने तुम्हारी दौलत और तुम्हारे परिवार से प्यार नहीं किया है। अगर तुम मुझे अपना न सके तो दुनिया का कोई भी इन्सान मुझे छू भी न पाएगा। यह मेरा फैसला है।” दीपिका ने जाते हुए दीपक से कहा जो पलभर को उसकी बात सुनने के लिए रूक गया था।
सारी बातें दीपिका की माँ दरवाजे के पीछे से सुन रही थी। उसे समझते देर न लगी कि आखिर माजरा क्या है। उसे इस बात से गहरा सदमा पहुंचा कि उसकी बेटी का घर बसने से पहले ही उजड़ गया। वह खाट पर जाकर लेटने के लिए पीछे मुड़ी, आगे बढ़ना ही चाहती थी कि उसे एक जोड़ की हिचकी आई, वह धडाम से नीचे गिरी। दीपक से बात करने के तुरंत बाद जब वह घर के अन्दर आई तब उसने देखा कि उसकी माँ जमीन पर औंधे मुँह गिरी पड़ी है। उसने तुरत ही अपने माँ के नब्ज को टटोलना शुरू किया उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे। वह परलोक सिधार चुकी थी। दीपिका के मुँह से जोर की चीख निकली और वह दहाड़े मारकर रोने लगी।
पर उसे सांत्वना देने वाला कोई नहीं था। थोड़ी देर बाद वह शांत हुई और खामोश हो गई। वह ठीक वैसी ही ख़ामोशी थी जो तूफान के गुजर जाने के बाद होती है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। परन्तु माँ का अंतिम संस्कार करना उसके लिए आवश्यक था। इसलिए वह घर से बाहर निकलकर आस पास के लोगों से मदद मांगने गयी कि किसी तरह उसके माँ को श्मशान ले जाया जा सके। पर इसके लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। उसके पास जो कुछ थोड़े पैसे बचे थे उसी से वह अपनी माँ की अंतिम क्रिया के सामान लेकर आई। माँ के शव को अकेले ही अपने कंधे पर उठाकर श्मशान ले गयी। चिता सजाई, माँ को चिता पर लिटाया, मुखाग्नि दी और जैसे ही अग्नि की ज्वाला प्रज्वलित हुई उसके मन में एक विचार आया कि अब इस दुनिया में मेरा अपना कौन है? इसलिए जीने की तमन्ना त्याग कर वह भी चिता अग्नि में कूदना चाहती थी।
जैसे ही उसने चिता अग्नि में प्रवेश करने के लिए कदम बढ़ाया, किसी ने पीछे से उसका बाँह पकड़कर उसे जोरदार-झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया। पीछे मुड़कर देखती है उसके बचपन का प्रेमी उसका दीपक खड़ा था। उसने उसे जोड़ से अपनी बाँहों में भर लिया। वहाँ से लौटकर दोनों एक मंदिर में पहुँचे, भगवान को साक्षी मानकर एक दूसरे के गले में माला डाली. दीपक ने दीपिका के माँग को सुर्ख सिन्दूर से भर दिया और वहाँ से दोनों अपनी नई दुनिया बसाने चल पड़े।
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